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Tuesday, July 1, 2025

पोस्ट कार्ड का वो गुज़रा ज़माना---- नरेन्द्र चावला

  पोस्ट कार्ड/खत/चिठ्ठियां 

याद आ रहा है पोस्टकार्ड का वो गुज़रा ज़माना। 

3/5 फिर15पैसों में हो जाता था मिलना-मिलाना।।

कितने प्यार से होता था,अपने डाकिये का इंतज़ार।

खबरें खुशी-गम की व लिफाफे में राखी का इंतज़ार ।।

खुशी-खुशी देते थे डाकिये को होली-दीवाली पे इनाम। 

कभी-कभी पोस्टकार्ड का फटा कोना मचाता था कोहराम।।

आज मुझे याद आरही है चिट्ठियों की, प्यारी-प्यारी भाषा। 

सारे परिवार के दिलों में रहती थी सुनने की अभिलाषा।

जैसे "अत्र कुशलम तत्रास्तु" हिंदी में लिखा होता था। 

"यहां खरियतहै आपकी खरियत खुदा से नेक मतलू"उर्दू में ,

और"चिटटे चौल उबाल के उत्ते पाँवां खंड , तुहाडी चिट्ठी पढ़ के--   दिलां च पेंदी ठंड" पंजाबी में लिखा होता था !!!!

Starting में हिंदी/पंजाबी में"मेरे परम पूज्य मासी,मामा,चाचा जी -

लिखते थे प्रणाम,पेरीपोना या हाथ जोड़कर नमस्कार। 

उर्दू में -"वालिद/वाल्दा/हमशीरा खैरियत से हैं बरखुरदार"।।

काश ! पोस्टकार्ड,अंतर्देशीय पत्र व एरोग्राम न होते बंद !

e mail,whats app,phone messagesमें कहाँ वो आनंद !!

**नरेन्द्र चावला-भारत**अमेरिका**


                         

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