दान ! कैसा -कैसा
दान देना भी एक सत्यकर्म है महान।
एक से एक बढ़ कर दानियों से भरा पड़ा है जहान।।
अपने नाम से देना नहीं कहलाता दान ,
क्योंकि इसमें छलकता है मानव का अहंकार।
दान सदैव झुक कर ही देना चाहिए ,
क्योंकि वास्तव में प्रभु हैं सब कीकुछ देवनहार।।
नामांकन पट्टियां लगवाना,भवन दानआदि है अहम की तस्वीर।
जगत प्रसिद्ध हैं ऋषि दधीचि,शिवि तथा कर्ण आदर्श दानवीर।।
कन्या दान,गऊ दान,दुग्ध व जलदान को मानता है उचित समाज।
कुछ मुख्य दान हैं-शिक्षा देना तथा बाँटना वस्त्र,भोजन या अनाज।।
प्रशंसनीय हैं यदि किया जाए- बेनाम गुप्तदान तथा क्षमादान।निंदनीय है समाज में मरणोपरांत किया जाने वाला गऊ दान।।
लेकिन सर्वोत्तम माने जाते है नेत्रदान , अंगदान तथा रक्तदान। किन्तु सर्वोपरि है घोषित करना,मरणोपरान्त अपना देह दान।।
*नरेन्द्रचावला*भारत*अमेरिका
No comments:
Post a Comment