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Wednesday, January 29, 2025

अभिलाषा*** नरेन्द्र चावला

                     आशा/अभिलाषा  

       मानव की आशा तथा अभिलाषा सदा रहती हैं अनंत। 

        सदैव जन्म से ले कर मृत्यु पर्यन्त।।  

   जीवनभर भले ही मिले आशा अथवा निराशा।

परन्तु निरंतर सजीव रहती है हमारी अभिलाषा।।

 जैसे - जैसे पूर्ण हो जाती हैं हमारी अनिवार्यताएँ । 

 तुरंत चहुँ ओर से घेर लेती हैं हम को विलसितायें।।

तत्पश्चात उत्पन्न होने लगता है हमारे भीतर अहंकार। 

तथा उस पर छाने लगता है-स्वार्थ का अन्धकार।। 

दूसरों के सुख देख-देख कर ईर्षा हो जाती है प्रबल। 

किसी भी प्रकार अपनी अभिलाषा को करते हैं सफल।।

अंत में हो जाता है एक दिन,दूध का दूध-पानी का पानी। 

आशा तथा अभिलाषा में छिपी हैं हमारे कर्मों की यही कहानी।। 

****नरेन्द्र चावला**अमेरिका***** 

       

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