पुतले-ईश्वर और कुम्हार के
ये कैसी मोहमाया कहीं धूप तो कहीं छाया।
प्राणी कभी धन दौलत तो कभी स्नेहबंधन में रहे भरमाया।।
स्वार्थ,अहम जब त्याग देंगे ,
तभी पाएंगे सुखशान्ति की छाया।।
(वार्तालाप ) एक बार ईश्वर और कुम्हार के बीच हुआ,विचित्र वार्तालाप।
दोनों ही हैं पुतला निर्माता ,सुनिये रोचक स्पष्टीकरण आप।!
कुम्हार बोला-"हे परमात्मा- हम दोनों ही तो पुतले बनाते हैं !
मेरे पुतले शांत-निर्जीव व सजावटी हैं तथा पूजे भी जाते हैं।।
और प्रभु आपके बनाये पुतले,परस्पर लड़ते व लड़वाते हैं"।।
ईश्वर-"मैंने तो मानव को मन-मस्तिष्क विशेष दिए थे अंग !
उसने स्वयं ही स्वार्थ,मोहमाया,अहंकार में उनको दिया रंग।।
अपने क्षणभंगुर जीवन के बारे में,सब भलीभांति जानते हैं।
फिर भी इस मृगतृष्णा के पीछे निरंतर दिनरात भागते हैं।।
मेरे बनाये अहंकारी पुतले सुख में कभी नहीं करते मुझे याद!
केवल स्वयं ही करके कुकर्म,गलतियां,मुझे करते हैं फरियाद"!!
"हे कुम्हार-तू धन्य है,तेरे पुतलों के समक्ष,लोग सर झुकाते हैं।
जबकि मेरे पुतले मुझे रिझाने को,विभिन्न नाटक दिखलाते हैं "!!
*********नरेन्द्र कुमार चावला -गुरुग्राम-भारत*********
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