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Tuesday, July 29, 2025

उजाले ( दिवंगत आत्माओं के प्रति श्रद्धांजलि)-- नरेन्द्र चावला

                उजाले

  (दिवंगत आत्माओं के प्रति श्रद्धांजलि )

       उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो।

       न जाने किस घड़ी ज़िंदगी ही शाम हो जाए !! 

       इस भावुक शेयर ने तो मुझे पूरा हिला दिया। 

       मेरी काव्य-रचना का एक सिलसिला बना दिया।।

       केवल कुछ उजाले ही तो रह जाएंगी निशानियां। 

      हमारे अच्छे-बुरे कर्मों की ही ,बनेगी कहानियां।।

      न दौलत ,न प्रापर्टी ,न कपड़े और न ही कारें। 

        दुनिया से कुछ भी नहीं जाने वाला साथ हमारे।।

  सत्य है ज़िंदगी में हमें ऐसे उजाले छोड़ कर है जाना। 

 कि हमारे बाद कुछ प्यार से हमें याद  करे ज़माना !! 

***नरेंद्र चावला-भारत*अमेरिका***     


 

Saturday, July 12, 2025

अध्यापनकाल की स्मृतियां***नरेन्द्र चावला

    मेरी अध्यापन काल की स्मृतियाँ 

आज अकस्मात उभर कर आई एक स्मृति रेखा ! 

जब मैंने अपने अध्यापनकाल के दृश्यों को देखा !!

कभी हुयी दिल्ली रामपुरा स्कूल की गर्व की बात !

जब अमेरिका में एक योग्य छात्र से हुयी मुलाकात !!

शायद यही होता है एक सेवामुक्त अध्यापक पुरुस्कार !

विख्यात कम्पनी में निदेशक अनिल जैन का आभार !!

जिसने 1986/88 में मेरे सहकर्मियों की याद दिलाई !

कल उन्हीं के सुपुत्र के विवाह निमंत्रण पर दी बधाई !! 

जब एयरपोर्ट पर एक Mech,इंजीनियर ने किया प्रणाम!

मुझे पहचाना व बताया स्वीपर का पुत्र हूँ राज है नाम !! 

फिर याद आये कुछ बेहद शरारती बच्चे,जो पढ़ाई में कमज़ोर !

ऐसे छात्र खेलों में और कक्षा में नियंत्रण करते थे पुरज़ोर !! 

उस समय छात्र को दण्ड मिलने पर प्रसन्न होते थे अभिभावक !

और अनुशासन व्यवस्था भी चलती थी समुचित तथा व्यापक !!

मुझे गर्व होता है जब-जब देखता हूँ अपनी सेवानिवृति के चित्र !

अनुपम प्रसन्नता होती है देख कर उन निर्धन छात्रों के चरित्र !! 

जब उन छात्रों ने किया था मेरा इतनी पुष्प मालाओं से सम्मान !

ईश्वर से विनती है हमारी नई पीढ़ी पर,सरकार दे अधिक ध्यान !! 

शिक्षक दिवस पर होता है मन व्यथित देखकर हालात।

अपेक्षाकृत शिक्षकों के वेतन वृद्धि पर नहीं होती बात।।

कहने को तो छात्रों के भविष्य निर्माता कहलाते हैं।

परन्तु परिवार चलाने हेतु पार्टटाइम ट्यूशन पढ़ाते हैं।।

आज आधुनिक शिक्षा प्रणाली में अध्यापकों पर लगे हैं प्रतिबंध !                                                   अभिभावक भी हैं विवश क्योंकि संयुक्त-परिवार प्रथा हो रही बंद !! 

डाक्टर/इंजीनियर तो बन रहे परन्तु भूल गए,परम्परागत संस्कार ! 

नरेन्द्र चावला कहे अभी भी समय है संभालिये अब तो युवाशक्ति-प्रभार !! 

*****नरेन्द्र चावला -वर्जीनिया-अमेरिका*****

Tuesday, July 8, 2025

खोया- पाया--- नरेन्द्र चावला

     खोया पाया

जैसा भी बीज हम जीवन में बोते हैं।

वैसे ही कभी कुछ पाते,कभी कुछ खोते हैं

मिलते हैं हमें कभी दण्ड तो कभी पुरुस्कार ।

यही है हमारे कर्मों का खोया पाया चमत्कार।।

      अपने कर्मों के जाल से हम,नहीं सकते निकल।

      जन्म से मृत्यु तक हमें भोगना ही पड़ेगा फल !!

    कभी अस्वस्थ होंगे तो कभी आर्थिक हानि का होगा सामना।        कभी किसी को खोकर तो कभी खुशियों का दामन थामना।।

    हमें सदा रहना चाहिए ईश्वर अल्लाह  का शुक्रगुज़ार।

    जो पाया और जो खोया,सब हमारे कर्मों का हैआधार।।

    मैंने अपने शिक्षक-जीवन में पाए,आश्चर्यजनक पुरुस्कार। 

    जब-जब मिला दलित जाति के विद्यार्थियों से हार्दिक प्यार।।

    जो अब अपने जीवन में एक प्रतिष्ठित पद पर हैं कार्यरत।

    कुछ सरकारी स्कूल के बच्चों ने पाई विदेशों में महारत।। 

    केवल राष्ट्रीय पुरुस्कारों से ही नहीं होता मूल्यांकन हमारा। 

   वास्तविकता तो हमारे कर्म ही दिखाते हैं,पग-पग पे नज़ारा।।

मंदिर,मस्जिद,चर्च तथा गुरुद्वारों से ऊपर हैं हमारे करम।          किसीअसहाय का सहारा बनोगे तो मिट जायेंगे सब भरम।।

    जब-जब आती है ------- हमारे जीवन में समृद्धि। 

    समझ लीजिये आपके कर्मों के खाते में हुई है वृद्धि।।

   जब भी आप से मिलके,किसी के चेहरे पे आये मुस्कुराहट। 

   समझ लेना ये सब भी है परमात्मा के वरदान की आहट।।

जो खोया है वह नहीं था आपका।

जो पाया हैं पुरस्कार है आपका।।

**नरेन्द्र चावला*अमेरिका**

                          

      

Tuesday, July 1, 2025

पोस्ट कार्ड का वो गुज़रा ज़माना---- नरेन्द्र चावला

  पोस्ट कार्ड/खत/चिठ्ठियां 

याद आ रहा है पोस्टकार्ड का वो गुज़रा ज़माना। 

3/5 फिर15पैसों में हो जाता था मिलना-मिलाना।।

कितने प्यार से होता था,अपने डाकिये का इंतज़ार।

खबरें खुशी-गम की व लिफाफे में राखी का इंतज़ार ।।

खुशी-खुशी देते थे डाकिये को होली-दीवाली पे इनाम। 

कभी-कभी पोस्टकार्ड का फटा कोना मचाता था कोहराम।।

आज मुझे याद आरही है चिट्ठियों की, प्यारी-प्यारी भाषा। 

सारे परिवार के दिलों में रहती थी सुनने की अभिलाषा।

जैसे "अत्र कुशलम तत्रास्तु" हिंदी में लिखा होता था। 

"यहां खरियतहै आपकी खरियत खुदा से नेक मतलू"उर्दू में ,

और"चिटटे चौल उबाल के उत्ते पाँवां खंड , तुहाडी चिट्ठी पढ़ के--   दिलां च पेंदी ठंड" पंजाबी में लिखा होता था !!!!

Starting में हिंदी/पंजाबी में"मेरे परम पूज्य मासी,मामा,चाचा जी -

लिखते थे प्रणाम,पेरीपोना या हाथ जोड़कर नमस्कार। 

उर्दू में -"वालिद/वाल्दा/हमशीरा खैरियत से हैं बरखुरदार"।।

काश ! पोस्टकार्ड,अंतर्देशीय पत्र व एरोग्राम न होते बंद !

e mail,whats app,phone messagesमें कहाँ वो आनंद !!

**नरेन्द्र चावला-भारत**अमेरिका**