पराधीन सपनेहुँ सुख नाहिं
पराधीन सपननेहुँ नाहिं। स्वाधीन जीव सुखमय जग माहिं।।
स्वाधीनता व्यक्ति का पुरुस्कार।मगर इसमें सम्भव एक विकार।।
असीमित स्वाधीनता में अहंकार। व्यक्ति हो जाता स्वार्थी,बेकार।।
मानव को रहना चाहिए सदा सावधान।कभी नहीं करे अभिमान।।
वर्ना जाति - धर्म के लफड़े। धनी - निर्धनों में सम्भव हैं झगडे।।
नयी नस्ल को रखें संस्कृति से जोड़। वर्ना पतन का सम्भव मोड़।।
भारतवर्ष इसका स्थूल उदाहरण। राजनीति में स्वार्थ है कारण।।
स्वाधीनता का हो रहा दुरूपयोग। लोकतंत्र में लग रहे हैं रोग।।
**नरेन्द्र चावला-गुरुग्राम-भारत**
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