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Monday, July 8, 2024

तन्हाई*** नरेन्द्र चावला

            तन्हाई               ब-जब मैंने पसंद की, ज़िंदगी में तन्हाई !

तभी यादों की जम करके बरसात आयी !!

  घेर लिया जकड़ लिया मुझ को ख्वाबों ने ऐसे !

बीहड़ जंगल में कोई अकेला शावक फंसा हो जैसे।।

अचानक अंधकार में लगी बिजली की चमक तड़तडाई।

न जाने तब फिर क्यों ये आंख भर आई।।

बन्द किए दरवाज़े,खिड़कियां,फिर भी हुआ नहीं कोई असर।

   तन्हाई का पता नहीं ,क्या हुआ होगा हशर !!

 बंद की आँखें तो सामने आ गई उसकी तस्वीर !

  हार गई तन्हाई, हाय  मेरी तदबीर !!

 मुझे भीड़ में भी लगता है अकेलापन, अक्सर !

उड़ता रहता है मेरा मन बिन पंखों  के , रात भर !!

तन्हाई में नहीं भाती कोई बजती शहनाई भी।

  नहीं ख़त्म होती तन्हाई ,कितनी लेता         रहूँ अंगड़ाई भी !! 

 कभी-कभी सोचता हूँ ,कैसे पाऊँ तन्हाई से निजात !

 शायद यह भी कोई दण्ड अथवा जीने की

है एक सौगात !!

यारो, मुझ पर खुदा की हुई है रहमत और मैंने कर ली है तैयारी।

मन के जगाओ विचार लिखो कविताएं,

और तूलिका पकड़ो करो चित्रकारी।।

नरेन्द्र चावला कहे,एक ही रास्ता है तन्हाई से मुक्त होने का,रहो मगन !

 मुस्कुराओ,गाओ यारों के संग और करते रहो प्रभु का सुमिरन !!                  **नरेन्द्र चावला*वर्जीनिया*अमेरिका**                                                                                                                                

               

 

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