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Sunday, October 13, 2024

रावण के मुख से (दशहरा) (Rawan Ke Mukh Se)

रावण के मुख से ( दशहरा )

सदियाँ बीती मुझे जलाते , जन -जन को लीला दिखलाते !
राम -रावण युद्ध दिखाते , लकीर हर वर्ष पीटते जाते !!
किंतु कभी क्या मन में आया , क्या खोया और क्या है पाया !
अगणित रावण घूम रहे हैं , व्यभिचारी हो झूम रहे हैं !
मैंने सीता को आदर से रखा ,कभी बदन पर हाथ न रखा !
आज के रावण ने बहिन बेटी को ,भोग विलास का केन्द्र बनाया !
आतंक -वाद व् भ्रष्टाचार ने , क्यों है आज फन फैलाया !!
स्कूल -कालिज ,दफ्तर,सड़कों पर , गुंडा -गर्दी बढती जाती !
रामलीला या कृष्ण लीला हो, राजनीति से भरती जाती !!
नहीं मरेगा रावण तब तक , जब तक राम को न अपनाया !
तुंरत हो दण्डित भ्रष्टाचारी ,दोषी नेता या बलात्कारी !
क्या होगा पुतले जाने से , रावण -मन जब तक न जलाया !!

---------- नरेंद्र कुमार चावला - वर्जिनिया ,अमेरिका

2 comments:

36solutions said...

विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनांयें

makrand said...

तुंरत हो दण्डित भ्रष्टाचारी ,दोषी नेता या बलात्कारी !
क्या होगा पुतले जाने से , रावण -मन जब तक न जलाया !!

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