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Sunday, August 31, 2025

यादें बचपन की*** नरेन्द्र चावला

          यादें बचपन की 

                  ( नरेन्द्र कुमार चावला ) 

सन उन्नीस सौ पचास पचपन की -----------

यादें घिर आयी हैं फिर आज मेरे बचपन की।!

भारत-विभाजन ने खेला मेरे बचपन में खेल !

परन्तु इस परलय ने बढ़ाया,पारस्परिक मेल।।

बंटता था भाई-बहनों,पड़ोसी व दोस्तों में सच्चा प्यार।

माँ-बाप,दादा-दादी,नाना-नानी,मामा,चाचा का मिला दुलार।।

मेरा बचपन अमीरी के झूलों से धरती पर आ गिरा। 

Imported खिलौनों से देसी खिलौनों में आ घिरा।।

और अब मिले ऐसे खेल,जिनसे हुआ में मित्रों से मेल।।

स्टापू खेलना व रस्सी कूदना,डंडे से पहिये चलाना। 

गुल्ली-डंडा,धूप-छाँव,गुड्डे-गुड़िया,गीटे व पिट्ठू खेलना।।

पेड़ों की डालियों पर हँसते-मुस्काते हुए झूले झूलना।

आंधी आने पर भागकर अम्बियां ले कर आना,मुश्किल है भुलाना।। 

सावन में पानी भरे गड्डों से मेंढ़कों की वो प्यारी टर्र-टर्र। 

रात को घर से बाहर जाकर , खेलने से लगता था डर।!

दुःख-सुख में पड़ोसियों का वो अविस्मरणीय सहयोग।

कहाँ खो गए वे सब हितैषी तथा निस्वार्थी प्यारे लोग !! 

अभावग्रस्त जीवन में भी बच्चों की इच्छा होती रही पूरी। 

खाना-कपड़े,शिक्षा,कुछ मनोरंजन भी मिला , जो था जरूरी।।

दादी से कहानियां सुनना तथा साथ-साथ मंदिर,गुरुद्वारे जाना।

रविवारआर्यसमाज जाना,नहीं भूलता बिनाका गीतमाला ज़माना।।

अविस्मरणीय है वो बचपन,जिसमें खुशियां देते रहे मां-बाप। 

आज रिश्ते-नाते दूर हो रहे,आर्थिक भूख बढ़ रही,समझे आप।!

और अब तो वरिष्ठ होकर लौट आया है अनोखा बचपन।

कविताएं लिखना, चित्रकारी तथा संगीत में गुजर रहा ये बचपन।।*नरेन्द्रचावला*भारत*अमेरिका*    


   

           

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