वेदों से शिक्षा ( ऋग वेद )
ॐ ऋ २-२८-२ -- तव व्रते सुभगास: स्याम।
सरलार्थ -- हे वर्णीय परमेश्वर ! हम आपके द्वारा उपदिष्ट व्रतों का
अनुसरण करते हुए सौभाग्यशाली बने।
अग्नि का व्रत -- हे परमेश्वर !हम आज से अपने जीवन में अग्नि व्रत
धारण करते हैं। जिस प्रकार अग्नि समस्त ईंधनों को जलाकर
भस्म कर देती है उसी प्रकार हम अपने जीवन के समस्त दुर्गुणों
और दुर्व्यसनों को दमन करके ज्ञान और पुरुषार्थ के द्वारा तेजस्वी
तथा यशस्वी बनेगे ।
वायु का व्रत -- हम अपने शरीर को वायु के सद्दृश्य बलशाली बनाएंगे।
सूर्य का व्रत -- जिस पारकर सूर्य अपने तेज एवं प्रकाश से अंधकार का
विनाश करता है उसी प्रकार हम अपने सामर्थ्य से अज्ञान और अभाव
को विनष्ट करेंगे।
चन्द्रमा का व्रत -- जिस प्रकार चन्द्रमा के अंतर्गत शीतलता एवं सौम्यता है
उसी प्रकार हम अपनी वाणी और आचरण में मधुरता,सरलता एवं
सौम्यता रखेंगे।
सत्य का व्रत--हम अपने जीवन में सदैव सत्य पथ का अनुसरण करेंगे।
ॐ ऋ -१-२३-२९ -- देवा भवत वाजिन:
सरलार्थ -- हे मनुष्यो ! तुम दिव्य गुणयुक्त और शक्तिशाली बनो।
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