नव चेतना*प्रगति-पथ
गर्व हो रहा है आज नव चेतना से हमने प्रगति-पथ अपनाया था।
सत्तर वर्षो तक अंग्रेजों की नकल को, अब तक दोहराया था।।
गुलामी का कितना जबरदस्त था,हम सब के ऊपर असर।
अपना ही माल विदेशों से आयात करते रहे होकर बेखबर।।
अर्थ व्यवस्था,शिक्षा,भाषा,सेना,सब पर थी अंग्रेजी छाप।
बिके हुए थे नेता-अफसर और स्वार्थ में थे चुपचाप।।
समकालीन देश सभी उभरते गए , हम होते रहे कर्जदार।
फिर मुफ्तखोरी तथा आरक्षण के हम बनते गए शिकार।।
धीरे-धीरे आई नवचेतना,जागृति तथा स्वाभिमान से जागा हिन्दोस्तान।
सोई हुई जनता को अब होने लगी ,नेताओं की पहचान।।
महिलाओं में भी हुआ जागरण तथा शिक्षा में हुआ सुधार।
निजी व्यवसाय में जुटने लगी यही अब भारतीय सरकार।।
स्वदेश में निर्मित दवाओं से,नियन्त्रित हो रहे हैं रोग।
भारत के दूध,मसाले कपडे निर्यात आदि से,संतुष्ट हैं सब लोग।।
खुलती जा रही धीरे-धीरे अब,भ्रष्टाचारियों की भी पोल।
दबे हुए ऐतिहासिक रहस्य के पन्ने दिए जा रहे अब खोल।। अब तो गर्व है नवचेतना से भारत में हो रहे अदभुत सुधार। विदेशों में प्रशंसित हो रहा, हमारा स्वावलंबन का प्रगति पथ विस्तार।।
**नरेन्द्र चावला*वर्जीनिया*अमेरिका**
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