सामंजस्य
ज्यों ही मुझे सुमित्रा नंदन पंत जी से प्रेरणा मिली।
तुरंत मेरी लेखनी सामंजस्य विषय पर चल निकली ।।
सामंजस्य समाज में रहना चाहिए सदा व्याप्त।
वर्ना कैसे रहेंगे पक्ष-विपक्ष,विष-अमृत,दिनरात।।
संभव है असत्य-सत्य का सामंजस्य से ही परीक्षण।
सामाजिक शत्रुता-मित्रता का भी संभव रहस्योद्घाटन।।
भोजन में मीठे-नमकीन में सामजस्य भी है ज़रूरी।
यह घृणा-ईर्षा तथा प्रेम-वैमनस्य में रखता है दूरी।।
जब तक जग में रहेगा--स्वार्थ , ईर्षा और अहंकार।
केवल सामंजस्य से ही पनप सकेगा पारस्परिक प्यार।।
नरेन्द्र चावला कहे - सामंजस्य हेतु हैं अत्यंत ज़रूरी।
सच्चे दिल से होना चाहिए, शुकराना
तथा श्रद्धा-सबूरी।।
****नरेन्द्र चावला-वर्जीनिया (अमेरिका )********
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