सागर - मंथन
आधुनिक दूषित वातावरण से प्रभावित हो,करते प्रभु से निवेदन !
समय आचुका है अब तो होना चाहिए,समस्त विश्व में सागर-मंथन !!
चहुंओर व्याप्त हो रहा आतंकवाद का विष,फैल रहा भयंकर क्रंदन !
समाज में फ़ैल रहे स्वार्थवादी ,अवसरवादी,लुप्त सत्यता के चन्दन !!
नकली रूप धारण करके घूम रहे स्वतंत्रता से बहरूपिये बनकर संत !
आओ भोले शिवशंकर महादेव,पियो ये विष ,कीजिये दुखों का अंत !!
अगणित कंस, रावण,शिशुपाल उत्पन्न हुए,विध्वंसक हुआ वातावरण !
शीघ्र कीजिये तांडव नृत्य-लीला तथा न्यायशील त्रिशूल को धारण !!
जितना भी होता जायेगा दिन-प्रतिदिन ये आतंकवाद गहन और गहरा !
उतना ही शीघ्र अकस्मात उदित होगा,जग में सुखदायी भास्कर सुनहरा !!
अपनी ही लगाई हुयी आग में झुलस कर ये सब पतंगे भस्म हो जायेंगे !
तत्पश्चात जय श्री राम,जय श्री कृष्णा के पावन ध्वज चहुंओर लहरायेंगे!! **नरेन्द्र चावला-वर्जीनिया-अमेरिका **
No comments:
Post a Comment